भूविज्ञान रिमोट सेंसिंग और नवीनतम भूवैज्ञानिक और बूभौतिकीय प्रौद्योगिकी के संयोजन में कोर भू -वैज्ञानिक ज्ञान का उपयोग करके क्षेत्र की आवश्यकता को पूरा करने के लिए 2000 में एन.ई-सैक के रिमोट सेंसिंग और जी.आई.एस प्रभाग के तहत स्थापित उप-विभागों में से एक है। यह खनिज अन्वेषण, सुरंगों और बांधों के लिए अभियांत्रिकी भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण और मानचित्रण, सड़क नेटवर्क संरेखण, जी.एन.एस.एस सर्वेक्षण और भू-जल अनेवेषण आदि जैसे पृथ्वी विज्ञान अनुप्रयोगों से निपटने वाले राज्य विभागों को पेशेवर प्रशिक्षण प्रदान करता है। पूरे प्रभाग और केंद्र का मुख्य फोकस पूर्वोत्तर राज्यों में विभिन्न संगठनों को रिमोट सेंसिंग इनपुट और सहायता प्रदान करता था। तथापि, अपने अस्तित्व के एक दशक में, प्रभाग ने भूविज्ञान के विभिन्न पहलुओं में विशेषज्ञता का निर्माण किया है और इस क्षेत्र में गहन अनुसंधान और गहन विकास गतिविधियों में शामिल है। यह प्रभाग नवीनतम रिमोट सेंसिंग इमेज प्रोसेसिंग सॉफ्टवायर, हाई एंड वर्कस्टेशन और विभिन्न जी.आई.एस और जियोलॉजिकल मॉडलिंग पैकेज से संपन्न है। अत्याधुनिक सुविधा में उच्च अंत क्षेत्र आधारित स्पेक्ट्रॉ- रेडियोमीटर, अभियान मोड सर्वेक्षण के लिए दोहरी आवृत्ति जी.एन.एन.एस प्रणाली, निरंतर निगरानी के लिए स्थायी आई.आर.एन.एस.एस स्टेशन (क्रय में) और विभिन्न भू-वैज्ञानिक अनुप्रयोगों के लिए एस.ए.आर और ऑप्टिकल रिमोट सेंसिंग डेटा का विशाल संग्रह शामिल है। प्रभाग ने भू-वैज्ञानिक विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में कई अनुसंधान और परिचालन परियोजनाओं को सफलता पूर्वक निष्पादित किया है। प्रभाग में कुशल और अनुभवी संकाय है और भू-विज्ञान में आर.एस एवं जी.आई.एस और जी.एन.एस.एस अनुप्रयोगों पर प्रशिक्षण और लघु पाठ्यक्रम भी प्रदान करता है। एन.ई-सैक 2015 से आर.एस और जी.आई.एस में बुनियादि पाठ्यक्रम संचालित कर रहा है जहां भू-विज्ञान प्रभाग भूविज्ञान और आपदा प्रबंधन सहायता में सबसे अधिक आवश्यक प्रदान करने के लिए सक्रिय रूप से भाग लेता है। यह विश्वविद्यालय के छात्रों को एन.ई-सैक के किसी एक वैज्ञानिक के संयुक्त पर्यवेक्षेण के तहत अपने एम.टेक /एम.एससी शोध कार्य को पूरा करने के लिए 6 महीने से एक वर्ष के शोध प्रबंध समर्थन भी प्रदान करता है। इसने विभिन्न राज्य विभागों को भुगतान के आधार पर कई उपयोगकर्ता विशिष्ट परियोजनाओं को भी पूरा किया है।
सुदूर संवेदन और जी.आई.एस
भूविज्ञान
गतिविधियाँ (अतीत और वर्तमान)
राष्ट्रीय मिशन (भागीदारी)
इस परियोजना को राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन के तहत पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित किया गया था और एन.आर.एस.सी, इसरो द्वारा कार्यान्वित किया गया था। मानचित्र 1:50K (एस.ओ.आई टोपो शीट के अनुरूप) पर तैयार किया गया था और भू-जल की घटना के संभावित क्षेत्रों को दर्शाता है जो कि खुदाई/ट्यूब/बोरवेल के विकास के लिए स्थलों के चयन/पहचान के लिए लक्ष्य क्षेत्र को कम करने और पुनर्भरण संरचना के संभावित स्थानों को कम करने में मदद करता है। असम और मेघालय राज्यों को मानचित्रण किया गया है और पूरे एन.ई.आर के निर्बाध मोज़ेक डेटा बेस की तैयारी में भी प्रमुख भूमिका निभाई है। एन.ई.आर पर डेटाबेस इसरो के भूवन पोर्टल-भारतीय भू-प्लोटफॉर्म www.bhuvan.nrsc.gov.in पर उपलब्ध है।
भू-आकृति विज्ञान और स्थलानुरेख मानचित्र विभिन्न विकासात्मक गतिविधियों के साथ-साथ संसाधन सर्वेक्षण, पर्यावरण विश्लेषण, जल विज्ञान अध्ययन, अभियांत्रिक अनुप्रयोगों, भू-विवर्तनिक अध्ययन, भू-जोखिम, वैश्विक विवर्तनिक अध्ययन, लिथो संपर्कों और विवर्तनिक ईकाइयों का परिसीमन, विरूपपण पैटर्न का विश्लेषण, भू-जल और तेल की खोज और भूकंप में विभिन्न टैकटॉनिक क्षेत्रों के अध्ययन में महत्वपूर्ण और आवश्यक इनपुट में से एक बन जाते हैं। भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (जी.एस.आई) के सहयोग से भूविज्ञान समूह एन.आर.एस.सी ने राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम के तहत परियोजना की शुरूआत की। मणिपुर और नागालैंड राज्य का मानचित्रण किया जा चुका है और इसे पूरा कर लिया गया है।
एन.ई.आर का डेटाबेस इसरो के भुवन पोर्टल – इंडियन जियो-प्लेटफॉर्म www.bhuvan.nrsc.gov.in पर उपलब्ध है।
पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन महत्वपूर्ण अनाच्छादित प्रक्रियाएँ है जो संपत्ति और जीवन को नुकसान पहुंचाने के अलावा संचार और परिवहन के साधनों तको अक्सर नुकसान पहुंचाती है। अत्यधिक वर्षा और उच्च तीव्रता वाले भूकंप, भूस्खलन की घटना के लिए प्रमुख ट्रिगर कारक है। भू-स्खलन का पता लगाना और प्रभावित क्षेत्र की पहचान आपदा के बाद बचाव और राहत कार्यों की योजना बनाने के साथ-साथ भू-स्खल की संवेदनशीलता और खतरे के आकलन के लिए एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है। मणिपुर और नागालैंड राज्य के लिए इंवेंटरी मैपिंग सफलता पूर्वक पूरा कर लिया गया है और अध्ययन के आउटपुट को इसरो के भुवन पोर्टल-इंडियन जियो-प्लेटफॉर्म www.bhuvan.nrsc.gov.in. के माध्यम से एक्सेस किया जा सकता है। अरूणाचल प्रदेश राज्य के लिए भी यही अभ्यास शुरू किया जा चुका और अध्ययन का परिणाम उसी पोर्टल पर उपलब्ध होगा।
उपयोगकर्ता सहायता
असम राज्य विभिन्न प्राकृतिक खतरों जैसे- बाढ़ /आकस्मिक बाढ़, भूस्खलन, भूकंप, चक्रवात आदि के प्रति संवेदनशील है और हमेशा समाज के लिए एक बड़ा खतरा बना हुआ है। अत, वर्तमान समय में उनकी व्यवस्थित शमन योजना के बारे में चिंतित होने का कारण बन गया है। इसके अतिरिक्त, प्रमुख दुर्घटना जोखिम (एम.एच.ए) औद्योगिक स्थलों के लिए बेहतर सुरक्षा उपाय, आपातकालीन तैयारी और प्रतिक्रिया (दौरान और बाद में) भी निर्णय निर्माताओं के लिए एक अभिन्न अंग बन रहे हैं। असम राज्य प्रबंधन प्राधिकरण (ए.एस.डी.एम.ए), असम सरकार के लिए शमन की एक व्यापक योजना तैयार करने के लिए, संबंधित अध्ययन क्षेत्र के प्रासंगिक खतरे और उनकी भेद्यता एवं जोखिम मूल्यांकन पर अध्ययन किया गया था। गुवाहाटी शहर के लिए भूस्खलन का आकलन किया गया है और शिलचर नगर और गुवाहाटी शहर के लिए क्रमशः औद्योगिक जोखिम मूल्यांकन किया गया है।
अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और जी.आई.एस के आगमन के साथ, किसी भी क्षेत्र में नई या पुरानी सड़कों के संरेखण /पुनर्संरेखण की योजना बनाना आसान हो गया है। परियोजना ब्रह्मांक के तहत सीमा सड़क संगठन (बी.आर.ओ), 761 बी.आर.टी.एफ (जी.आर.ई.एफ), अरूणाचल प्रदेश के लिए अध्ययन किया गया था, ताकि एन.ई-सैक के फोटोग्रामिटी के सहयोग से 1:50k पैमाने पर स्पेस आधारित इनपुट की सहायता से अपर सियांग और अरूणाचलप्रदेश की निचली दिबांग घाटी के डुमरो और सेमबस्ती के दो गाँवों को जोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त मार्ग का पता लगाया जा सकें। चूँकि यह क्षेत्र भूस्खलन प्रवण क्षेत्र की उच्च क्षमता के अंतर्गत आता है, संवेदनशीलता मानचित्र तैयार किया गया था और उपयोगकर्ता द्वारा प्रदान किए गए पूर्वनिर्धारित मानदंड (20:1) के अलावा लंबत संरेखन की प्रक्रिया के दौरान उपयोग किया गया था।
आंतरिक
शहरी/गाँवों/ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क नेटवर्क की संयोजकता स्थिति का आकलन करने के लिए सीमित क्षेत्र सरंवेक्षण के साथ उपग्रह इमेजरी का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सकता है। अंतराल क्षेत्रों के मामले में, नई सड़कों को बिछाने से पहले इलाके की स्थिति और इसकी विशेषताओं जैसे भूमि उपयोग, भूमि कवर, उजागर चट्टान के प्रकार, भूमि रूपों, जल निकासी पैटर्न और ढलान की स्थिति आदि का विस्तृत अध्ययन, प्राथमिकता के आधार पर विभिन्न स्थानिक अस्तायी विभेदन के उपग्रह डेटा से अध्ययन किया जा सकता है। कॉर्टोसैट 1 और 2 उपग्रह डेटा और अन्य संपार्श्विक डेटा जैसे संबंधित राज्य/ केंद्रिय प्राधिकरणों से मौजूदा सड़क नेटवर्क की विस्तृत स्थिति के साथ- साथ गाँव /निपटान वितरण के लिए जनगणना/भूमि रिकॉर्ड मानचित्रों का उपयोग करके अध्ययन शुरू किया गया था। मोघालय के री-भोई जिले की पहचान पायलट आधारित अध्ययन शुरू करने के लिए की गई थी और परिणाम 1:10,000 पर सड़क के प्रकार और संयोजकता मानचित्र की स्थिति और मृदा और चट्टान के नमूनों (उजागर /कोर) के भू-तकनीकी सर्वेक्षण के लिए स्थान प्रदान करेगा। जिसका उपयोग पीडब्लूयूडी, एन.एच.ए.आई, ग्राम प्राधिकरण द्वारा आगे की आवश्यक कार्य योजना के लिए उपयोग किया जा सकता है।
जयंतिया हिल्स जिले में कोयला खनन की गतिविधियाँ प्रकृति में चोटे पैमाने पर होने के बावजूद छिटपुट और व्यापक रूप से भूमि के व्यक्तिगत मालिकों द्वारा नियंत्रित एक विस्तृत क्षेत्र को कवर करती है। आदिम उप-सतह खनन विधि जिसे आमतौर पर रैट –होल खन न के रूप में जाना जाता है, पूरी खनन प्रक्रिया में एक सामान्य प्रथा है। यह सर्वविदित है कि खनन ने क्षेत्र में धन और रौज़गार के अवसर लाए. हांलाकि, अगर इसे अराजक और अवैज्ञानिक तरीके से किया जाता है, तो खनन के बाद के उपचार और खनन क्षेत्रों के प्रबंधन के अभाव में गंभीर पर्यावरणीय समस्याए हो सकती है। अतः, भारी धातुओं की सांद्रता और कोयला खनन क्षेत्र में इसके बाद के प्रभाव से संबंधित मुद्दों का समाधान करने के लिए एक विस्तृत अध्ययन करना प्रासंगिक है। परियोजना का परिणाम क्षेत्र में भारी धातुओं के संदूषण की डिग्री के बारे में जानकारी प्रदान करेगा। यह जोड़ा जा सकता है कि क्षेत्र में विभिन्न सरकारी संगठनों द्वारा अवैज्ञानिक और अनियंत्रित खनन गतिविधियों के कारण क्षेत्र के बिगड़ते पर्यावरण का पुनर्जनन।
भविष्य की पहल
यह परियोजना ज़मीनी स्तर (रेडॉन निरानी) से आयोनोस्फीयर (कुल इलेक्ट्रॉन सामग्री अनुमान) तक विभिन्न भूकंप पूर्व संकेतों की खोज में अनुसंधान एवं विकास से निपटेगी। यह लिथोस्फीयर – निचले वातावरण – आयोनोस्फीयर और भूकंप की घटनाओं क बीच युग्मन गतिशीलता को बेहतर ढंग से समझने के लिए आयोनोस्फीयर (टीईसी), ज़मीन आधारित माप (रेडॉन गैस) और उपग्रह डेटा विश्लेषण परिणामों(थर्मल विसंगति और अन्य) से अगरदूतों को एकीकृत करेगा।
मेघालय और आसपास के क्षेत्र में स्थायी जी.एन.एस.एस / आई.आर.एन.एस.एस नेटवर्क स्थापित करके क्रस्टल संचरण की निरंतर निगरानी की योजना बनाई गई है। परियोजना का उद्देश्य पूर्वोत्तर क्षेत्र में प्लेट गति व्यवहार और विवर्तनिक तनाव निर्माण में इसके प्रभाव को समझना है। यह उत्तर पूर्व भारत जैसे अत्यधिक भूकंप प्रवण क्षेत्र (ज़ोन – V ) में तनाव वितरण पैटर्न को समझने की दिशा में मार्ग खोलता है।
अरूणाचल हिमालय के साथ कुछ हॉटस्पॉट क्षेत्रों के साथ एन.ई.आर का अधिकांश हिस्सा वैश्विक भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्र के उच्च और मध्यम से उच्च श्रेणी में आता है। असम, अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोराम, नागालैंड और त्रिपुरा के पहाड़ी क्षेत्र भी मानसून के मौसम में भूस्खलन की घटनाओं के लिए संवेदनशील है। यह परियोजना एन.ई.आर के महत्वपूर्ण कस्बों और बसावट क्षेत्रों के भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्र तैयार करने से संबंधित होगी और मौसमी वर्, के आधार पर भूस्खलन की पूर्व चेतावनी प्रदान करने के लिए एक रोल मॉडल विकसित करेगी।
एन.ई-सैक ने एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन की वित्तीय सहायता स मेघालय में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सी.आर.एस) तिविधियाँ भी प्रारंभ की है। इस कार्यक्रम के तहत मेघालय के विभिन्न स्कूलों में आरओ प्रणाली के साथ वाटर प्यूरीफायर की आपूर्ति की जाएगी। इस कार्यक्रम के तहत पुलिस बाज़ार जैसे भीड़-भाड़ वाले स्थानों में शौचालयों का निर्माण भी प्रस्तावित और स्वीकृत है।